सरस, सरल, मनोहरी है।
अपनी हिंदी प्यारी है।
निसंदेह इसमें दो मत नहीं है कि अपनी राष्ट्रीय भाषा हिंदी सरस, सरल एवं मनोहरी है तथा अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण यह भारत के एक बड़े भू-भाग में बोली एवं समझी जाती है। राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधने वाली यह भाषा हमारे स्वाभिमान की भी प्रतीक है। आजादी की लड़ाई में इसने जहां जन‑चेतना जगाने का कार्य किया तो वही आजादी के उपरांत इसके द्वारा राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता को मजबूती देने का कार्य किया। यही कारण है कि महात्मा गांधी, दयानंद सरस्वती आदिने हिंदी भाषी ना होते हुए भी अपने उद्देश्यों भाषणों एवं लेखों आदि के लिए हिंदी भाषा को ही चुना क्योंकि वह भली भांति जानते थे कि यह भारत की एकमात्र ऐसी भाषा है जिसे भारतवासी एक बड़ा वर्ग बोलता एवं समझता है।

हिन्दी भाषा की लोकप्रियता
15 अगस्त सन 1947 को भारत आजाद हुआ और हिंदी के योगदान एवं उसकी लोकप्रियता का सम्मान करते हुए संविधान के अनुच्छेद 343 के अंतर्गत 14 सितंबर सन 1949 को इसे राजभाषा का पद प्रदान किया गया। अपनी विशिष्टताओं के कारण ही आज विश्व भर के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में इसके पठन‑पाठन की व्यवस्था की गई है तथा बोलने वाले लोगों की संख्या के आधार पर आज विश्व में इसे दूसरा स्थान प्राप्त हो गया है। तकनीकी शब्दावली विकसित हो जाने से आज इसके द्वारा तकनीकी विषयों की पढ़ाई भी की जा सकती है।
हिन्दी भाषा का सम्मान ना करना
किंतु दुर्भाग्य का विषय है कि इतना कुछ होते हुए भी हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी अपनों के द्वारा आज भी उपेक्षित ही है। जो सम्मान इसे मिलना चाहिए था वह इसे आज तक नहीं मिला। आज भी हम हिंदी की उपेक्षा कर अंग्रेजी बोलने को अपनी महानता का सबूत मानते हैं। नेतागण, खिलाड़ी एवं फिल्मी कलाकारों पर तो अंग्रेजी का ऐसा भूत सवार है कि अधिकांश अवसरों पर सामने बैठा पत्रकार चाहे इनसे हिंदी में प्रश्न क्यों ना करें इनके मुख से उत्तर अंग्रेजी में ही निकलेगा। ऐसे में क्या कहा जाए और कौन इनको समझाए कि ऐसा करना उचित नहीं है। जब एक ऐसी मानसिकता के लोग रहेंगे तब तक हम अपने आप को अंग्रेजी मानसिकता से नही उबारेंगे। जब तक हम अपने दैनिक जीवन में हिंदी का अधिक से अधिक उपयोग नहीं करेंगे, जब तक हिंदी बोलने में हम गर्व का अनुभव नहीं करेंगे, तब तक हिंदी को मिला राजभाषा का सम्मान सार्थक नहीं हो सकेगा।
हिन्दी भाषा को बढ़ावा देना
हमें यह अवश्य सोचना होगा कि जिस भाषा की अपनी एतिहासिक भूमिका है, जिसके पास विपुल साहित्य संपदा है, जिसके पास तकनीकी शब्दावली है तथा जिसके पास सरसता, सरलता एवं बोधगम्यता की त्रिवेणी है, उस पवित्र एवं समृद्ध भाषा को अपनाने में हम संकोच क्यों करते हैं। हमें अपने व्यवहारिक जीवन में हिंदी को अधिक से अधिक अपनाना होगा क्योंकि यह हमारी पहचान है हमारा सम्मान है। इस पर किसी कवि ने कहा है-
हम सब की पहचान है हिंदी।
मीठीमधुरिमतान है हिंदी।
हिमशिखरों से, सिंधु-लहर तक,
सारा हिंदुस्तान है हिंदी।
इसलिए अपनी राष्ट्रभाषा को अपनाने में संकोच ना करें, आगे आए और कहते रहें-
यह कहने से मिलेगा हर्ष।
जय हिंदी, जय भारतवर्ष।